अगर कंपनी में करनी है जल्द तरक्की तो करे ये काम, चंद सालों में सैलरी होगी 10 हजार से 1 लाख पार !
केस नंबर 1: दत्तू और नैनू (अलग अलग विभाग में कार्य करते है ) कंपनी के अंदर दिन रात मेहनत की, 7 साल कड़ी मेहनत करने के बाद भी उनकी सैलरी 20000₹ तक ही पहुंच सकी लेकिन जब ये मैनेजर की चापलूसी करने लगे तथा अपने साथियों की एक-एक खबर मैनेजमेंट को देने लगे तो 3 साल में ही उनकी सैलरी 50000₹ के पार हो गई ।
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केस नंबर 2: छोटू के अपने साथियों के साथ अच्छे संबंध है सभी लोग उन्हें बड़ा भाई मानते हैं तथा वह परिश्रमी है। इनके मधुर स्वभाव से बाकी मजदूर इनको अपना आदर्श भी मानते हैं लेकिन इनकी सैलरी भी 6 साल में 27000₹ ही है। कंपनी में जब तानाशाही नीतियों के खिलाफ मजदूरों ने कानूनी प्रक्रिया के तहत यूनियन के लिए आवेदन किया तो छोटू ने अपने साथियों में पकड़ होने के कारण, मैनेजमेंट के कहने पर मजदूरों को गुमराह करने लगे जिससे मजदूर इस यूनियन में ना जुड़े उनकी यह पकड़ मैनेजमेंट के काम आई तो मैनेजमेंट ने उनकी सैलरी 3 साल में ही 80000₹ के पार कर दी ।
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केस नंबर 3: मोटू एक गोल्ड की कंपनी में मेल्टिंग डिपार्टमेंट में कड़ी मेहनत करते हैं तथा कठिन से कठिन कार्य बड़ी आसानी से कर लेते हैं पर इन सब के बावजूद उनकी सैलरी 30000₹ ही है। मेल्टिंग के दौरान कंपनी में गोल्ड लॉस होता है जिससे कंपनी को गोल्ड में हानि होने लगी एक दिन मोटू ने गोल्ड लॉस को कम करने के लिए बाहर से आने वाले मेटल को(DORE या अयस्क जिसमे 60% से 92% तक गोल्ड हो सकता है) मेल्टिंग के दौरान कुछ हिस्सा निकालने लगा और उसके साथ अन्य मेटल, उसमें मौजूद अन्य धातु कि मात्रा के हिसाब से (जैसे चांदी या ताँबा) डालने लगा जिससे गोल्ड लॉस होना बंद हो गया जिससे कंपनी को गोल्ड में इजाफा होने लगा, कुछ ही सालों में कंपनी ने मोटू की सैलरी एक लाख ₹ से ज्यादा कर दी तथा पदोन्नति भी की गई ।
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केस नंबर 4: पंखु और पीसू कंपनी में एक ही डिपार्टमेंट में अकाउंटिंग तथा डाटा विश्लेषण का कार्य करते हैं कड़ी मेहनत के बावजूद इन्हें तरक्की नहीं मिल रही थी तथा सैलरी भी कम है, वहीं दूसरी तरफ उनके मैनेजर रिजेक्शन की मात्रा को लाख कोशिशें करने के बाद भी नियंत्रित/कंट्रोल नहीं कर पा रहे थे तो पंखु और पीसू ने रिजेक्शन के डाटा में हेर-फेरी करने का सुझाव दिया और मैनेजर के साथ यह कार्य करने लगे जिससे रिजेक्शन कुछ ही महीने में ना के बराबर देखने लगा इसके बाद मैनेजर ने खुश होकर उनका प्रमोशन और हर साल सबसे अधिक इंक्रीमेंट होने लगा जिससे उनकी सैलरी बाकी विभाग के कर्मचारियों से सबसे अधिक हो गई तथा कंपनी ने मैनेजर को भी प्रमोशन देकर HOD बना दिया।
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केस नंबर 5: प्रीत और जानवी दोनों मधुर स्वभाव वाली हैं तथा कड़ी मेहनत करती हैं लेकिन उनकी सैलरी उनके साथ काम करने वाले साथियों से कम है। HOD से इन्होंने इसकी वजह पूछी तो बताया गया तुम्हारा मधुर व्यवहार ही इसकी सबसे बड़ी वजह है जिससे आप लोग मजूरों को कंट्रोल नहीं कर पा रहे हो, मैनेजर की इस बात पर कुछ ही समय बाद उन्होंने अपना कठोर व्यवहार, बात-बात पर गलती निकालना, छुट्टी के लिए आना-कानी करना जैसे तरीके अपनाए तो जल्द ही इनका डिपार्टमेंट में तरक्की के साथ पदोन्नति हो गई।
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केस नंबर 6: अनुज एक कंपनी में HR डिपार्टमेंट में कार्य करते हैं उन्हें वहां काम करते हुए 12 साल से ज्यादा हो चुकी है, अपने काम के प्रति ईमानदारी वह मेहनत से वह कार्य करते हैं पर उनकी स्थिति और साथियों के मुकाबले खराब है तथा सैलरी भी कम है अपनी स्थिति को सुधारने तथा बेहत्तर करने के लिए उन्होंने कड़ी से कड़ी मेहनत की फिर भी कंपनी में उन्हे सफलता नहीं मिली।
कंपनी आए दिन खराब खाने की शिकायतों से परेशान है जिसे कंपनी हल नहीं कर पा रही है इस पर अनुज ने झूठे आरोप लगाकर तथा FIR के माध्यम से मजदूरों को बाहर कर दिया जिन्होंने खराब खाने की शिकायत की तथा बाकी मजदूरों के अंदर यह डर बना दिया की शिकायत करने वाले कंपनी में नहीं रह सकते इसके बाद खाने की शिकायतें नहीं आई कंपनी उनके इस तरीके से काफी खुश हुई तथा इसके बाद अनुज की पदोन्नति तथा सैलरी में कई गुना इजाफा कर दिया ।
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केस नंबर 7: 10 से 12 साल के बाद एक MNC कंपनी मै मजदूरों की सैलरी 25000 ₹ के आस-पास है पर कंपनी मजदूरों को यह सैलरी नहीं देना चाहती और यह सैलरी कंपनी को ज्यादा लगती है तो इससे निपटने के लिए कंपनी ने मीटिंग बुलाकर कुछ सुझाव मांगती हैं तो एक कर्मचारी यह सुझाव देता है कि “पुराने मजदूरों को कंपनी से बाहर निकाल दो और नए मजदूर भर्ती कर लो, जिससे पुराने मजदूरों/श्रमिकों की सैलरी में 3 से 4 नये(fresh) मजदूर मिल जाएंगे” कंपनी को यह सुझाव अच्छा लगता है और इस सुझाव देने वाले कर्मचारी को सबसे ज्यादा इंक्रीमेंट कंपनी से मिलता है ।
अगर आप को भी कंपनी में कार्य करते हुए काफी समय हो चुका है तथा आपकी भी सैलरी कम है तो आप इनमे से कोई भी तरीका अपनाते है तो हो सकता है आपकी कंपनी में जल्दी पदोन्नति तथा सैलरी में कई गुना इजाफा कर दिया जाए लेकिन इन सभी उदाहरणों से आप यह समझ सकते हैं कि पहले जब कहीं इंक्रीमेंट होता था तो वह उनके परिश्रम, कार्य के प्रति लगन, ईमानदारी, वफादारी ,मधुर स्वभाव आदि के कारण होता था इसके साथ ही किसी व्यक्ति के अंदर एक से ज्यादा हुनर है तो उन्हें वरीयता दी जाती थी लेकिन आज के दौर में चंद पैसों के लिए कंपनियां तानाशाही, दमनकारी नीतियों व गलत कार्यों को बढ़ावा दे रही है जिसके कारण कंपनियों के अंदर मजदूरों की सैलरी तथा वेतन वृद्धि, पदोन्नति पर एक बड़ा सवाल खड़ा होता है। कंपनी के इस रवैया से मजदूर वर्ग में मजदूरों का मानसिक शोषण, शारीरिक शोषण होना स्वाभाविक है जो एक निश्चित समय के बाद मजदूरों/श्रमिकों/कर्मचारियों को इस बात का एहसास होता है कि अगर उन्हें नौकरी करनी है तो उन्हें कंपनी की हर एक नीति को बिना सवाल किए अपनाना पड़ेगा तथा यह भी समझना होगा कि शोषण कंपनी का एक हिसा होता है ।
आज एक आदर्श कंपनी सिर्फ और सिर्फ मजदूरों के लिए कोरी कल्पना से ज़्यादा कुछ भी नहीं है जहा मजदूर वर्ग को अपनी कड़ी मेहनत, कंपनी के प्रति लगन, सपर्पण भाव व अनुभव के आधार पर तरक्की कर सके।
अगर बात की जाए कंपनी में इंक्रीमेंटकिस हिसाब से होना चाहिए किस नीति के तहत होना चाहिए इसके लिए एक कंपनी में श्रमिकों/मजदूरों की सैलरी को निर्धारित करने के लिए निम्नलिखित तथ्यों, बिंदुओं या बातों का ध्यान रखना अति आवश्यक है ।
- **बाजार के मानदंड (Market Standards):**
“बाजार के मानदंड” का साथ सैलरी के संदर्भ में मतलब होता है कि वह वेतन जो किसी नौकरी के लिए बाजार में सामान्यतः या आमतौर पर प्राप्त होने वाला होता है। यह आमतौर पर उस क्षेत्र के नियमों, प्रचलितताओं, और अन्य कारकों के आधार पर निर्धारित किया जाता है जिसमें वह नौकरी हो रही है तथा क्षमता, अनुभव, पद के लिए आवश्यक शैक्षिक योग्यता, और बाजार में उपलब्धता के आधार पर प्राप्त होती ।
यह बाजारी मानक सैलरी किसी विशेष क्षेत्र, उद्योग, या क्षेत्र में शामिल नौकरियों के लिए विशेष रूप से मान्य होती है। यह विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न हो सकती है और यह आमतौर पर बाजार के स्थिति, आर्थिक प्रदर्शन, और अन्य कारकों पर निर्भर करती है।
- **कौशल और अनुभव (Skills and Experience):** श्रमिक के कौशल, अनुभव, और पेशेवर योग्यता के आधार पर सैलरी को निर्धारित किया जा सकता है।
“कौशल और अनुभव” से संबंधित सैलरी का मतलब है कि व्यक्ति के पास उस काम में सामर्थ्य और अनुभव होने के कारण उसे एक अधिकतम मान्यता दी जाती है। यह दोनों कौशल और अनुभव संबंधित होते हैं क्योंकि उनके माध्यम से व्यक्ति कार्य को सही ढंग से पूरा करने में सक्षम होता है।
A . **कौशल (Skills):** कौशल व्यक्ति के निश्चित काम को करने की योग्यता को संदर्भित करता है। यह उन दक्षताओं और नौकरी से संबंधित कौशलों को शामिल करता है जो किसी काम को करने में महत्त्वपूर्ण होते हैं। उदाहरण के लिए, एक कंप्यूटर इंजीनियर के लिए कौशल शामिल हो सकते हैं – कैसे कोडिंग करें, कंप्यूटर नेटवर्क्स का प्रबंधन करें, या सॉफ्टवेयर की विकास करें।
B . **अनुभव (Experience):** अनुभव व्यक्ति की पिछली कामगिरी और उस नौकरी में प्राप्त ज्ञान और कौशल को संदर्भित करता है। यह दिखाता है कि व्यक्ति ने पहले वह कार्य किया है और उसमें कितना संभावित अनुभव है। अनुभव व्यक्ति को विभिन्न परिस्थितियों में काम करने की क्षमता प्रदान करता है और उसे समस्याओं का समाधान करने में मदद करता है।
- **क्षेत्रीय और स्थानीय फैक्टर्स (Regional and Local Factors):**
“क्षेत्रीय और स्थानीय फैक्टर्स” से संबंधित सैलरी का मतलब है कि व्यक्ति के निर्धारित वेतन को उनके कामकाज के स्थानिक या क्षेत्रीय परिसर के आधार पर निर्धारित किया जाता है। यह फैक्टर्स स्थानीय अर्थव्यवस्था, जीवन की लागत, और अन्य स्थानिक परिस्थितियों पर निर्भर करते हैं।
A . **स्थानिक अर्थव्यवस्था:** वेतन का स्तर एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में भिन्न हो सकता है। उदाहरण के लिए, वहाँ उच्च क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था और जोब मार्केट होने पर वेतन स्तर अधिक हो सकता है जबकि किसी अन्य क्षेत्र में न्यूनतम वेतन स्तर हो सकता है।
B . **जीवन की लागत:** एक क्षेत्र में जीवन की लागत की अधिकता या कमी स्थानीय सैलरी स्तरों को प्रभावित कर सकती है। जगहों के बीच जीवन की लागत में अंतर होने के कारण, वहाँ की सैलरी स्तर भी भिन्न हो सकता है।
C . **स्थानिक परिस्थितियाँ:** कुछ स्थानों में क्षेत्रीय या स्थानिक फैक्टर्स जैसे की उपलब्धता के स्तर, प्रकृति की आपातकालीनता, या स्थानिक नौकरी की आपूर्ति आदि वेतन स्तर को प्रभावित कर सकते हैं।
- **कंपनी की वित्तीय स्थिति (Company’s Financial Situation):**
“कंपनी की वित्तीय स्थिति” से संबंधित सैलरी का मतलब है कि वेतन का स्तर कंपनी की वित्तीय हालत के आधार पर निर्धारित किया जाता है। यह उस कंपनी की क्षमता को दर्शाता है कि वह अपने कर्मचारियों को कितना मानवाधिकारिक रूप से प्राप्त करने के लिए सक्षम है।
जब एक कंपनी की वित्तीय स्थिति मजबूत होती है, तो वह आमतौर पर अपने कर्मचारियों को अधिक वेतन और लाभ प्रदान कर सकती
कंपनी की वित्तीय स्थिति स्थायी और अस्थायी कारणों पर निर्भर कर सकती है, जैसे कि व्यावसायिक लाभ, उत्पादन की स्थिति, वित्तीय पोषण, बाजार की स्थिति, और अन्य कारक।
- **कंपनी की नीतियां (Company Policies):** ।
“कंपनी की नीतियां” से संबंधित सैलरी का मतलब है कि वेतन और लाभ के स्तर किसी कंपनी द्वारा अपनी नीतियों और विधियों के अनुसार निर्धारित किया जाता है। यह नीतियां कंपनी द्वारा निर्धारित और स्वीकृत की जाती हैं ताकि वे कर्मचारियों को उचित और न्यायसंगत वेतन प्रदान कर सकें।
कंपनी की नीतियां वेतन स्तर को निर्धारित करने में विभिन्न कारकों को ध्यान में रखती हैं, जैसे कि काम का प्रकार, स्तर, और प्रदेश के कानूनों के अनुसार। इन नीतियों में स्पष्टीकरण होता है कि किस प्रकार की कार्यक्रम, कौशल, अनुभव, और अन्य कारकों के आधार पर वेतन का प्रमाणन होगा।
इसके अलावा, यह नीतियां लागू होती हैं कि किसी भी और कार्यवाही के बाद कोई नई या अतिरिक्त वेतन या लाभ का आवंटन किया जाएगा या नहीं।
- **प्रदेश के कानून (State Laws
“प्रदेश के कानून” से संबंधित सैलरी का मतलब है कि वेतन का स्तर प्रदेश के कानूनों और विनियमों के अनुसार निर्धारित किया जाता है। यह नियम विभिन्न प्रदेशों और क्षेत्रों में विभिन्न हो सकते हैं और अलग-अलग कामकाज के लिए अलग-अलग विधियों को प्रभावित कर सकते हैं।
ज्यादातर प्रदेशों में काम करने वाले लोगों के लिए न्यूनतम वेतन, काम की अधिकतम घंटे, अधिकारिक अवकाश, और अन्य अधिकारों के निर्धारण में कानूनी विधियां होती हैं। इन कानूनों का पालन करना कंपनियों और उनके कर्मचारियों के लिए अनिवार्य होता है।
कुछ प्रदेशों में, कुछ खास क्षेत्रों में कानूनी अनुपालन के लिए कंपनियों को आवश्यकता होती है कि वे न्यूनतम वेतन और अन्य लाभों का पालन करें, जो कि प्रदेश के कानूनों द्वारा निर्धारित किया जाता है। इसके अलावा, कानून कंपनी और उसके कर्मचारियों के अधिकारों और प्रावधानों को भी सुनिश्चित करता है।
- **संगठन की संघ (Union Negotiations):** अधिकांश महत्वपूर्ण कंपनियों में, कर्मचारी संघों और संघों के साथ बातचीत करके श्रमिकों की सैलरी और लाभों को निर्धारित किया जाता है।
“संगठन की संघ (Union Negotiations)” से संबंधित सैलरी का मतलब है कि वेतन और लाभ के स्तर को किसी संगठन या कर्मचारी संघ के द्वारा संगठन के साथ वार्ता करके निर्धारित किया जाता है।
कर्मचारी संघ या लेबर यूनियन एक संगठन होता है जो कर्मचारियों के हितों और अधिकारों की रक्षा करने के लिए काम करता है। यह उनके लिए सही वेतन, कामकाज की शर्तें, और अन्य लाभों की मांग कर सकता है। सामान्यतः, ये संघ या यूनियन कंपनी के प्रबंधन के साथ वार्ता करते हैं ताकि वे कर्मचारियों के लिए उचित और न्यायसंगत शर्तें और लाभ प्रदान कर सकें।
जब संगठन के संघ या कर्मचारी संघ के द्वारा वेतन और लाभ के स्तर की वार्ता की जाती है, तो इसका मतलब है कि कर्मचारी संघ ने अपने सदस्यों की हितों की रक्षा के लिए उचित और न्यायसंगत वेतन और लाभों के लिए प्रयास किया है। इस तरह की वार्ता के बाद, कंपनी और संघ के बीच एक समझौता होता है जिसमें वेतन और लाभ के स्तर को निर्धारित किया जाता है।
इस प्रकार, “संगठन की संघ या संगठन के साथ वार्ता करने” से संबंधित सैलरी का मतलब है कि वेतन और लाभ के स्तर को कार्यकर्ताओं की मांगों और कर्मचारी संघ की प्रतिनिधित्व में वार्ता करके निर्धारित किया गया है।
इन सभी तत्वों का समावेश करके, कंपनियाँ आमतौर पर अपने कर्मचारियों की सैलरी को निर्धारित करती हैं।
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अगर कंपनी इन सभी तथ्यों के आधार पर पदोन्नति तथा सैलरी को काम करने वाले मजदूरों/श्रमिकों के परिश्रम, कार्य के प्रति लगन, ईमानदारी, वफादारी, स्वभाव, किसी व्यक्ति के अंदर एक से ज्यादा हुनर है आदि को ध्यान में रखकर किया जाए तो कंपनी तथा कर्मचारियों के बीच समानता का भाव, कंपनी कि निर्धारित नीतियों और कानून पर विश्वास, कंपनी के अंदर संतुलन, कंपनी और मजदूरों/श्रमिकों के बीच विश्वास को बढ़ावा मिलता है जिससे एक आदर्श कंपनी के निर्माण में मदद मिलती है ।