"काइज़ेन (kaizen)” भारत में शोषण की नई तकनीक ?
जब कहीं kaizen(काइज़ेन) का नाम अगर किसी कंपनी में आता है तो उसका उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ कंपनी की तरक्की और वहां काम करने वाले मजदूरों के कार्य में सुधार करना, प्रोसेस में बेहतरी लाना और कंपनी के सदस्यों को बेहतर तरीके से काम करने के लिए प्रेरित करना है। इसका मूल मंत्र है “छोटा कदम, निरन्तर विकास” होता है। काइज़ेन के तहत, कर्मचारी नियमित तौर पर अपने कार्य को समीक्षा करते हैं और समय-समय पर छोटे सुधारों को लागू करके अपने तथा दूसरों के कार्य में सुधार करते हैं इनमें कंपनी के प्रोडक्शन पर कोई प्रभाव नहीं होता, बल्कि इससे प्रोडक्शन में इजाफा ही होता है।आपको बताते चले ” kaizen(काइज़ेन)” एक जापानी शब्द है जिसका अर्थ “सुधार” या “बेहतरी” है। यह शब्द व्यवसायिक प्रबंधन के क्षेत्र में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। काइज़ेन की सिद्धांतिक उत्पत्ति तौर पर जापानी उद्योगों में हुई थी, जहाँ इसे कारखानों की दिनचर्या में लागू किया गया था।
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लेकिन आज के दौर में भारत के कुछ कंपनियां kaizen(काइज़ेन) को एक नीति बन्ध तरीके से मजदूरों के बेहतरी के नाम पर, कंपनी मजदूरों का शोषण करती हैं। जापान में जहां अगर कोई मजदूर kaizen(काइज़ेन) करता है, तो कंपनी उसे पुरस्कृत करती है, पर भारत में ऐसा नहीं है। शुरुआत में कंपनी जापान की राह पर चलती है, kaizen(काइज़ेन) देने वाले हर आइडिया पर विचार किया जाता है, यहाँ तक कि एक टीम भी बनाई जाती है जो मजदूर द्वारा काइज़ेन पर कार्य करती है और बेस्ट काइज़ेन को पुरस्कार देने के साथ-साथ मजदूरों को बोनस के रूप में पैसे भी देती है, जिससे और अधिक मजदूर प्रेरित होकर बेहतर kaizen(काइज़ेन) कर सके, पर वहाँ काम करने वाले मजदूरों को यह पता नहीं होता कि कुछ समय के बाद kaizen(काइज़ेन) के नाम पर उनका शोषण शुरू हो जाएगा।
इसके लिए कंपनी मजदूरों को पुरस्कृत देने के बजाय kaizen(काइज़ेन) को उनकी सैलरी का हिस्सा बना देती है। इसे आप इस तरह समझ सकते हैं: अगर किसी कंपनी में मजदूर काम कर रहे हैं और kaizen(काइज़ेन) जैसी पॉलिसी कंपनी लेकर आती है तो 1 से 3 सालों तक कंपनी में लगभग 95% तक सुधार हो जाता है, लेकिन जैसे ही लगभग 3 साल के बाद kaizen(काइज़ेन) आना बंद हो जाता है, तो kaizen(काइज़ेन) को सैलरी में जोड़कर उनका हर साल होने वाले इंक्रीमेंट को यह कहकर कम कर देती है कि “तुम्हारे kaizen(काइज़ेन) ना होने पर इस बार तुम्हारा इंक्रीमेंट कम किया जाता है क्योंकि तुम अब कंपनी के बारे में नहीं सोच रहे हो।“
सबसे बढ़ा प्रभाव तब पड़ता है जब कंपनी में हर साल होने वाला मजदूरों का वेतन वृद्धि, मजदूरों के काम और मेहनत करने के बजाए सिर्फ kaizen(काइज़ेन) पर किया जाए जिससे management/प्रबंधक अपने मनमाने तरीके से उन मजदूर का वेतन कई गुना करती है जो management/प्रबंधक की बातों के लालच में आकर उनका किसी भी कार्य में साथ देते है, चाहे वह एक दमनकारी नीति ही क्यों न हो जिसके कारण बाकी मजदूरों का मानशिक तथा शरारिक शोषण होता है तथा अंदर यह डर बना दिया जाता है कि अगर मजदूरों ने कंपनी में हो रहे किसी भी काम के प्रति मना किया चाहे, वह गलत ही क्यों ना हो, तो उनकी सैलरी नहीं बड़ेगी, तथा उनका मानसिक शोषण यूं ही होता रहेगा । चाहे कंपनी हर साल मजदूरों से दिन रात मेहनत करा रही हो और अरबों का मुनाफा कामा रही हो
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kaizen(काइज़ेन) का उपयोग यदि सही तरीके से किया जाए, तो यह कर्मचारियों की स्थिति को सुधार सकता है, लेकिन यदि इसका दुरुपयोग किया जाता है तो यह कर्मचारियों को शोषित कर सकता है।
हालांकि, काइज़ेन का उपयोग कामकाजी मजदूरों के शोषण के लिए नहीं किया जाना चाहिए। kaizen(काइज़ेन) एक सहयोगी और सहभागी दृष्टिकोण के साथ लागू किया जाना चाहिए, जिसमें कर्मचारियों के अधिकार और स्वाधिकार का पूरा ध्यान रखा जाए अगर बात की जाए तो काइज़ेन के नाम पर जो शोषण किया जा रहा है वह बेहद ही गलत कार्य है। अगर ऐसी कंपनियां यह कार्य करती हैं, तो उन्हें यह काम नहीं करना चाहिए, क्योंकि कोई भी चीज़ अगर बेहतरीन के लिए बनाई गई हो तो उसका इस्तेमाल उसी कार्य के लिया करना चाहिए ।
कंपनी में इस तरह के शोषण के खिलाफ मजदूरों को निम्नलिखित कदम उठाने चाहिए:
- संगठन और समर्थन: मजदूरों को एक साथ आना चाहिए और एक संगठन बनाना चाहिए ताकि उनकी आवाज को सुना जा सके। यह संगठन कंपनी के साथ बातचीत कर सकता है और उनके हितों की रक्षा हो सके ।
- कानूनी कदम: यदि कंपनी में शोषण हो रहा है, तो मजदूरों को कानूनी कदम उठाना चाहिए। यह स्थानीय अधिकारिकों, श्रम नियामक अधिकारी, या न्यायालय के माध्यम से हो सकता है।
- शिकायतें दर्ज करना: मजदूरों को कंपनी में शोषण के खिलाफ शिकायतें दर्ज करनी चाहिए। इसके लिए कंपनी की आंतरिक शिकायत प्रक्रिया का उपयोग किया जा सकता है।
- मीडिया और सार्वजनिक चेतावनी: मजदूरों को अपने मुद्दे को सार्वजनिक करने के लिए मीडिया का सहारा लेना चाहिए। इससे कंपनी को सार्वजनिक दबाव महसूस होगा और शोषण को रोकने के लिए उसे बाध्य किया जा सकता है।
- एकस्पोजर: अगर शोषण को रोकने के लिए कोई और उपाय साबित नहीं हो रहा है, तो मजदूरों को अपने मुद्दे को लेकर सार्वजनिक स्तर पर साधारण लोगों को जागरूक करना चाहिए।