दुनिया की कोई भी कंपनी हो वह हमेशा आगे बढ़ना चाहती है तथा इसके लिए वह हमेशा नए-नए तरीके खोजती है, बनाती है और उन पर काम करती है इन्हीं में से एक तरीका है दिन-रात मेहनत करने वाले मजदूर या कर्मचारी को प्रोत्साहित करना। मजदूरों को प्रोत्साहित करने के लिए बोनस भी वही मौका है जहां कंपनी अपने मजदूरों को बोनस के रूप में पैसा प्रदान करती हैं और यह पैसा उन मजदूरों को उनके अधूरे सपनों को पूरा करने में काफी योगदान देता है। बोनस के पैसे से मजदूर अपने लिए भले ही BMW जैसी कार तो नहीं खरीद सकते पर अपने बच्चों की पढ़ाई या उनकी जरूरत पूरा करने में लगाते हैं, तो कोई मजदूर इस बोनस के पैसों से घर की जरूरत को पूरा करने की कोशिश करता है या कोई मजदूर इन पैसों से अपने परिवार के साथ घूमने-फिरने के लिए सोचता है। सबके अलग-अलग सपने हो सकते हैं पर शायद कंपनी ऐसा बिल्कुल नहीं सोचती वह तो यह सोचती है की बोनस कंपनी के लिए बोझ की तरह है और सरकार के बोनस एक्ट 1965 की मजबूरी के कारण उन्हें बोनस देना पड़ता है।
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आपको यह जानना बहुत जरूरी है कि भारत सरकार बोनस अधिनियम, जिसे “भारत का भुगतान बोनस अधिनियम, 1965” (Payment of Bonus Act, 1965) कहा जाता है, 25 सितम्बर 1965 को लागू हुआ था। इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य कामगारों को लाभ में हिस्सेदारी दिलाना था, जिससे उन्हें उनके काम का उचित प्रतिफल मिल सके और उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हो सके।
इस एक्ट में एक बदलाव किया गया था कि अगर मजदूर की बेसिक सैलरी ₹21000 है तो कंपनी बोनस देने के लिए बाध्य नहीं है जिसका कुछ कंपनीयो ने इसका गलत फायदा उठाया इसे आप ऐसे समझ सकते हैं की बोनस एक्ट में संशोधन से पहले अगर किसी मजदूर की सैलरी 7 या 8 साल में अगर ₹26000 हो चुकी है तो भी मजदूरों को बोनस मिलगा क्योंकि इस वेतन में बेसिक सैलरी ₹21000 से कम है। पर कुछ कंपनी ने बोनस ऐक्ट का गलत फायदा उठाया और मजदूरों की सैलरी अगर ₹26000 है तो इसमे बेसिक सैलरी को ₹21000 कर दिया जिसके मजदूरों को बोनस ना देना पड़े पर सैलरी में कोई खास इजाफा नहीं हुआ इसमे सबसे बड़ी बात ये है इस तरह का काम बड़ी-बड़ी MNC कंपनीयो ने भी मजदूरों के साथ किया जहा कंपनी मजदूरों से हर साल मोटा लाभ करोड़ों/अरबों रुपए के रूप में कमाती है ।
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जहां जो कंपनी मजदूरों से यह उम्मीद करती है कि मजदूर अपने परिवार को भूलकर, कंपनी के रासायनिक वातावरण में, 1800°C डिग्री तापमान पर आदि कंपनी के अंदर इस तरह के वातावरण में सिर्फ कंपनी के लिए काम करें और कंपनी जो सैलरी दे उसी सैलरी में अपनी पूरी जवानी भी झोंक दे और इसके बदले कंपनी के लाभ में मजदूर अपनी हिस्सेदारी कभी न मागे जोकि पूर्ण रूप से मजदूरों के लिए अन्याय पूर्ण ही है और इसे आप कंपनी का मजदूरों के ऊपर शोषण भी कह सकते है क्योंकि कंपनी को मजदूरों के हित का भी ध्यान रखना बेहद जरूरी है।
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समाज में बहुत सारी कंपनियां ऐसी भी हैं जहां बोनस एक्ट में बदलाव के बावजूद भी मजदूरों को कंपनी के लाभ का हिस्सा मानती है और मजदूरों को एक्स ग्रेशिया देने लगी है जिससे मजदूर अपने उन छोटे सपनों को पूरा कर सके जो किसी मजदूर के लिए BMW कार खरीदने के बराबर है इसके साथ ही मजदूरों को प्रोत्साहित करने के लिए कंपनियां ताप भत्ता(heat allowance), रसायन भत्ता(chemical allowance), आदि भी देती हैं जिससे मजदूर अपनी कंपनी के प्रति समर्पण भाव से कंपनी के साथ हमेशा हर परिस्थिथि में साथ रहे।
कंपनी और मजदूर दोनों एक दूसरे के लिए बेहद जरूरी हैं लेकिन कुछ कंपनियां मजदूरों को सिर्फ बोझ ही समझती हैं जो की समाज के लिए एक बुरा प्रभाव लेकर आती है इसलिए सरकार को इसके लिए उचित कदम उठने चाहिए और कंपनी में काम करने वाले मजदूर को समय-समय पर कंपनी की इस तरह कि सोच का विरोध करना चाहिए और इस पर लगाम लगानी चाहिए जिससे एक बेहतर समाज का निर्माण हो सके और मजदूरों को उनका हक यानि कि कंपनी के लाभ का हिस्सा भी मजदूरों को मिले जिससे उनकी आर्थिक स्थिति भी मजबूत हो सके।