महिलाओं के लिए सुरक्षित कार्यस्थल का अधिकार: कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) निषेध अधिनियम, 2013 का महत्व

The Sexual Harassment of Women at Workplace (Prevention, Prohibition and Redressal) Act, 2013

भारत उन्नति करने वाला देश है। इस उन्नति में आज पुरुषों के साथ महिलाएं भी साथ दे रही हैं। जहां पहले महिला को सिर्फ घर पर ही रहने की इजाजत थी, लेकिन आज भारत के संविधान से जो महिलाओं को सम्मान, हक, न्याय, और शिक्षा का अधिकार मिला है, वह आज के भारत में देखा जा सकता है। जिससे नारी ने अपना लोहा हर जगह मनवाया लिया है।

भारत का एक क्षेत्र जहां महिलाएं विशेष योगदान दे रही हैं, वह उभरते भारत का औद्योगिक क्षेत्र है, जिसे हम फैक्ट्री/कंपनी/कारखाना/संगठन/कार्यस्थल आधी के नाम से जानते है। इस क्षेत्र को शिक्षा के तौर पर तीन वर्गों में बांटा जा सकता है:

  1. अनपढ़ या अशिक्षित कामगार
  2. कम पढ़े-लिखे या सेमी कामगार
  3. उच्च शिक्षित या उच्च कामगार

इस क्षेत्र में अनपढ़ और सेमी-कामगार महिलाओं के दो ऐसे वर्ग हैं जहां पर औद्योगिक क्षेत्र में इनके भेदभाव, यौन उत्पीड़न, और अधिकारों का हनन सबसे अधिक किया जाता है। उच्च शिक्षित महिलाओं के साथ के साथ भी भेदभाव, यौन उत्पीड़न, और अधिकारों का हनन कार्यस्थल पर कई बार देखा गया है। ऐसा किसी भी महिला के साथ न हो सके, इसके लिए कई तरह के कानून भी बनाए गए हैं, जिनमें से एक कानून का नाम “कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न निषेध अधिनियम, 2013” हैं। यदि महिलाएं इन कानूनों को अपने लिए तथा साथी कामगारों के लिए अपनाएं, तो उनके साथ होने वाले अन्याय को रोका जा सकता है। हम यह उन्हीं महत्वपूर्ण कानूनों के बारे में चर्चा करेंगे जो हर एक महिला के लिए बेहद जरूरी हैं, जो किसी भी क्षेत्र में काम कर रही हो।

कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न निषेध अधिनियम, 2013

कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न में मोटे तौर पर निम्नलिखित शामिल हैं:

  • शारीरिक संपर्क और व्यवहार :
  • यौन संबंधों के लिए मांग या अनुरोध करना; या
  • यौन/लिंग संबंधित टिप्पणी करना; या
  • अश्लील साहित्य दिखाना (फोटो,वीडिओ लेख आदि); या
  • यौन प्रकृति का कोई अन्य अवांछित शारीरिक, मौखिक या गैर-मौखिक आचरण।

नियोक्ताओं के लिए प्रक्रियात्मक ज़रूरते जो महिलाओं के लिए जरूरी होनी चाहिए।

( नियोक्ता: कोई व्यक्ति या संस्था जो लोगों को काम पर रखती है और उन्हें वेतन या मज़दूरी देती है।)

यह अधिनियम शिकायत प्रदाली को विकसित करने के लिए नियोक्ता की आवश्यकताओं के बारे में रूपरेखा प्रदान करता है, जो कि धारा 4 में आंतरिक शिकायत समिति (Internal Complaints Committee – ICC) की स्थापना का प्रावधान है।

आंतरिक शिकायत समिति (ICC) की कार्यप्रणाली एक नजर में :

  • स्थापना: प्रत्येक कंपनी/संगठन/कार्यस्थल/फैक्ट्री में एक आंतरिक शिकायत समिति का गठन अनिवार्य है।
  • संरचना: समिति में कम से कम 4 सदस्य होने चाहिए, कर्मचारियों में से दो सदस्य, अधिमानतः महिला, जिन्हें सामाजिक कार्य या कानूनी ज्ञान का अनुभव हो, तथा
  • तृतीय पक्ष का सदस्य, अधिमानतः किसी गैर-सरकारी संगठन से संबद्ध।
  • कार्यकाल: समिति का कार्यकाल निश्चित होना चाहिए, और सदस्यों का चयन कार्यस्थल की नीति के अनुसार किया जाना चाहिए।
  • शिकायतों का निपटान: समिति को सभी शिकायतों का निपटान करने का अधिकार होता है, और उसे समय सीमा के भीतर निपटारा करना होता है।
  • गोपनीयता: शिकायत की प्रक्रिया में गोपनीयता बनाए रखना जरूरी है, ताकि शिकायतकर्ता को सुरक्षित महसूस हो सके।
  • अनुसंधान: समिति को शिकायतों की जांच करने और सभी पक्षों से बयान लेने का अधिकार होता है।
  • रिपोर्टिंग: समिति को अपनी कार्रवाई और निपटारे के बारे में एक वार्षिक रिपोर्ट तैयार करनी होती है।

अगर किसी कार्यस्थल पर 10 से कम कर्मचारी हैं, तो ICC का गठन करना मुश्किल होता है।  इस स्थिति में जिला स्तर पर स्थापित स्थानीय शिकायत समिति (LOC) में शिकायत दर्ज की जा सकती है।

  • धारा 19 के तहत नियोक्ताओं को कर्मचारियों को यौन उत्पीड़न के नुकसानों के प्रति संवेदनशील बनाने के लिए आत्मविश्वास बढ़ाने वाली कार्यशालाएं और जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करने चाहिए, तथा शिकायतकर्ता को पुलिस शिकायत दर्ज कराने में सहायता प्रदान करने की आवश्यकता होती है।

इसके अलावा, नियोक्ताओं को कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के कृत्यों में लिप्त होने के दंडात्मक परिणामों, ICC की संरचना और पीड़ित कर्मचारियों के लिए उपलब्ध शिकायत निवारण तंत्र का विवरण प्रदर्शित करना आवश्यक है।

शिकायत प्रक्रिया

  • इस प्रक्रिया में यौन उत्पीड़न का शिकार  महिला को अपनी शिकायत सुरक्षित रखने के लिए जल्द से जल्द कार्यस्थल पर स्थापित ICC में कार्रवाई करनी चाहिए।
  • धारा 9 के अनुसार यौन उत्पीड़न की शिकायत घटना की तारीख से तीन महीने के भीतर दर्ज की जानी चाहिए।
  • यदि महिला यह साबित कर सके कि गंभीर परिस्थितियों के कारण उसे पहले आवेदन दाखिल करने से रोका गया था, तो महिला को अतिरिक्त तीन महीने का समय और दिया जा सकता है, हालांकि अधिनियम में “गंभीर” की परिभाषा नहीं दी गई है।
  • आईसीसी को शिकायत प्राप्त होने के 90 दिनों के भीतर जांच पूरी करनी होती है। जांच अवधि के दौरान, शिकायतकर्ता के लिखित अनुरोध पर, महिला को किसी दूसरे  कार्यस्थल पर भेजा जा सकता है या तीन महीने तक की अवधि के लिए छुट्टी दी जा सकती है।
  • जांच पूरी होने पर, रिपोर्ट नियोक्ता या जिला अधिकारी (10 से कम कर्मचारियों वाले कार्यस्थलों के लिए) को भेजी जाएगी, जो 60 दिनों के भीतर रिपोर्ट पर कार्रवाई करने के लिए बाध्य होंगे।
  • नियोक्ताओं को जिला अधिकारी को समय पर रिपोर्ट प्रस्तुत करना सुनिश्चित करना आवश्यक है।
  • धारा 15 में विभिन्न कारकों/तथ्य/स्थिति पर विचार किया गया है, यदि पीड़ित महिला के लिए मुआवज़ा आईसीसी द्वारा उचित समझा जाता है, जिसमें मानसिक आघात, दर्द, पीड़ा, भावनात्मक संकट, चिकित्सा व्यय, प्रतिवादी की वित्तीय स्थिति, घटना के कारण कैरियर के अवसर में नुकसान, और एकमुश्त या किश्तों में इस तरह के भुगतान की व्यवहार्यता शामिल है।
  • परिणामस्वरूप, यदि आईसीसी द्वारा आरोपी व्यक्ति को दोषी पाया जाता है तो उसे संभावित रूप से महत्वपूर्ण वित्तीय नुकसान का सामना करना पड़ सकता है।
  • अधिनियम में प्रावधान है कि प्रतिवादी के वेतन या मजदूरी से कटौती की जा सकती है। यदि शिकायत सिद्ध नहीं होती है, तो ICC नियोक्ता या उपयुक्त जिला अधिकारी को निर्देश दे सकता है कि आगे कोई कार्रवाई आवश्यक नहीं है।
  •  
  • आशा करते हैं  “कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न निषेध अधिनियम, 2013” के बारे में जानकर आप और किसी भी महिला के ऊपर हो रहे किसी भी प्रकार के अनचाहे यौन संबंधी आचरण, जैसे अश्लील टिप्पणी, अभद्र संकेत, स्पर्श या अश्लील हरकतों को यौन उत्पीड़न के रूप में पहचानकर सभी कार्यस्थलों पर रोकने के लिए  इस कानून का सहारा ले सकती हैं। हर कार्यस्थल पर आंतरिक शिकायत समिति (Internal Complaints Committee) का गठन करना अनिवार्य है, इसकी भी आप अपने लिए मांग कर सकती हैं जिसका उद्देश्य उत्पीड़न के मामलों की जांच और निपटान करना होता है। इसमें पीड़िता की पहचान को गोपनीय रखा जाता है और निष्पक्ष जांच प्रक्रिया को सुनिश्चित किया जाता है।इस अधिनियम में महिला कर्मचारियों को यह विश्वास दिलाया गया है कि वे उत्पीड़न के खिलाफ खुलकर अपनी शिकायत कर सकती हैं और उनके साथ न्याय किया जाएगा। समिति द्वारा जांच के बाद दोषी व्यक्ति पर जुर्माना, स्थानांतरण, निलंबन जैसे कठोर कदम उठाए जा सकते हैं। इस प्रकार, “कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न निषेध अधिनियम, 2013” ने महिलाओं को सुरक्षा और आत्मविश्वास प्रदान किया है, जिससे वे कार्यस्थल पर बिना किसी डर के अपना योगदान दे सकती हैं।

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