मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961: महिला श्रम कानून की एक अहम कड़ी

Maternity Benefit Act, 1961: An important link in the women's labor law

माँ बनना हर महिला के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण पल होता है, लेकिन इसका असर उनके करियर पर भी पड़ता है। माँ बनने के दौरान और बच्चे के जन्म के बाद महिलाओं को अक्सर नौकरी से ब्रेक लेना पड़ता है या उन्हें नौकरी छोड़नी पड़ती है, इससे उनके उबरते हुए करियर में रुकावट आ सकती है तथा उन्हें अपने करियर में पीछे रह जाने का डर भी रहता है। आज के समय में माँ बनने के पूर्व और बाद महिलाओं को अब मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 का लाभ मिलने से उनके उबरते हुए करियर में रुकावट न आ सके, इसलिए इस अधिनियम को लाया गया था। जिसके बाद माँ और बच्चे के स्वास्थ्य के लिए 6 महीने का अवकाश का प्रावधान है।

मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 एक नजर:

मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961, भारत में महिला श्रमिकों के अधिकारों और उनके स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण कानूनों में से एक है। यह कानून खानों, कंपनियों, कारखानों, फैक्‍टरियों, सर्कस उद्योग, बागानों, दुकानों और जहां पर दस या अधिक व्यक्तियों को कार्य पर लगाते हैं, के लिए बनाया गया है। इसमें राज्‍य बीमा अधिनियम, 1948 में शामिल कर्मचारी नहीं आते हैं। गर्भवती महिलाओं को कार्यस्थल पर उनके अधिकार और सुविधाएँ प्रदान करने पर जोर देता है। मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 महिला श्रम कानून के अंतर्गत आने वाला यह अधिनियम इस बात को सुनिश्चित करता है कि महिलाएं गर्भावस्था के दौरान और उसके बाद भी शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रह सकें। यह अधिनियम महिलाओं को मातृत्व के समय आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा देकर उन्हें काम और परिवार के बीच संतुलन बनाने में सहायता करता है। गर्भावस्था के दौरान और मातृत्व के शुरुआती महीनों में, कामकाजी महिलाएं विभिन्न मातृत्व लाभों की पात्र होती हैं। सरकारी नौकरी वाली महिलाओं को पूर्ण वेतन के साथ मातृत्व अवकाश का अधिकार है, जबकि अन्य कामकाजी महिलाओं को 16 सप्ताह तक का मातृत्व लाभ मिलता है।सरकारी कर्मचारी इस लाभ का लाभ तभी ले सकते हैं जब उनके दो से कम जीवित बच्चे हों। महिलाएं अपनी सुविधा के अनुसार प्रसव से पहले और बाद में अवकाश का लाभ ले सकती हैं या पूरे अवकाश को एक बार में भी ले सकती हैं।

नियोक्ता गर्भावस्था के अंतिम कार्य महीने में महिला से किसी भी तरह का भारी काम नहीं करवा सकता है। महिला लंबे समय तक खड़े रहने, भारी सामान उठाने या किसी भी तरह के थकावट वाले कार्य को करने से मना कर सकती है, जो गर्भस्थ शिशु के लिए हानिकारक हो सकता है।

गर्भपात की स्थिति में, महिला को पूर्ण वेतन के साथ 45 दिन का अवकाश दिया जाता है। राष्ट्रीय मातृत्व लाभ योजना को संशोधित कर जननी सुरक्षा योजना नाम से एक नई योजना शुरू की गई है।

मातृत्व लाभ अधिनियम का मुख्य उद्देश्य महिलाओं को मातृत्व के समय वित्तीय सुरक्षा और नौकरी की गारंटी प्रदान करना है। इसमें गर्भवती महिला को 26 सप्ताह तक की छुट्टी का भुगतान मिलता है, जो किसी भी महिला के शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार होने के लिए पर्याप्त समय देता है। इसके साथ ही, अधिनियम इस बात को सुनिश्चित करता है कि गर्भावस्था के कारण महिलाओं को नौकरी से नहीं निकाला जा सकता।

मातृत्व लाभ अधिनियम 1961, के मुख्य बिंदु निम्नलिखित हैं:

मातृत्व अवकाश (Maternity Leave):

गर्भावस्था के दौरान 26 सप्ताह का मातृत्व अवकाश मिलता है, जिसमें पहले 8 सप्ताह प्रसव पूर्व और शेष 18 सप्ताह प्रसव के बाद लिया जा सकता है। पहले से दो बच्चे होने की स्थिति में यह अवकाश 12 सप्ताह का होता है।

नोट: कोई भी नियोक्‍ता उसके प्रसव या गर्भपात के तुरन्‍त बाद छह सप्ताह तक किसी प्रतिष्‍ठान में जानबूझकर बूझकर महिला को नियुक्‍त नहीं करेगा और कोई महिला अपने प्रसव या गर्भपात के तुरन्‍त बाद छह सप्ताह के दौरान किसी प्रतिष्‍ठान में कार्य भी नहीं करेगी।

भत्ता (Maternity Benefit):

अवकाश के दौरान महिला को पूरी सैलरी दी जाती है, जिससे उसकी वित्तीय स्थिति में कोई कमी न आए।

वर्क फ्रॉम होम सुविधा (Work from Home):

अधिनियम के तहत, यदि काम की प्रकृति के अनुसार संभव हो तो महिला को प्रसव के बाद वर्क फ्रॉम होम की सुविधा दी जा सकती है, जो नियोक्ता और कर्मचारी के बीच सहमति पर निर्भर करती है।

क्रेच (Day Care) की सुविधा:

जिन कंपनियों में 50 या उससे अधिक कर्मचारी हैं, उन्हें एक क्रेच सुविधा उपलब्ध करानी होती है ताकि महिलाएं अपने बच्चों की देखभाल कर सकें। महिला कर्मचारी दिन में चार बार क्रेच का दौरा कर सकती हैं।

नौकरी की सुरक्षा:

इस अधिनियम के तहत, महिला को गर्भावस्था के दौरान या मातृत्व अवकाश के कारण नौकरी से निकाला नहीं जा सकता। ऐसा करने पर यह अधिनियम के तहत अवैध माना जाएगा।

अन्य लाभ:

मातृत्व अवकाश के अलावा, भी यदि महिला को डॉक्टर के परामर्श पर गर्भावस्था से संबंधित चिकित्सा देखभाल की आवश्यकता होती है, तो इसके लिए भी उसे छुट्टी और वेतन का लाभ मिलता है।

योग्यता की शर्तें: अधिनियम का लाभ उन महिलाओं को मिलता है, जिन्होंने उस प्रतिष्ठान में कम से कम 80 दिनों तक काम किया हो।

अगर कोई कंपनी/फैक्ट्री/खानों/कारखाना/सर्कसउद्योग/बागान आदि मातृत्व लाभ अधिनियम,1961 की आवेलन करती है तो महिला को क्या करना चाहिए ?

अगर कोई कंपनी मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 का उल्लंघन करती है, तो महिला कर्मचारी को निम्नलिखित कदम उठाने चाहिए:

  1. महिला को सबसे पहले कंपनी के एचआर विभाग या प्रबंधन से लिखित रूप में संपर्क करना चाहिए और अपनी समस्या को स्पष्ट रूप से बताना चाहिए और मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 के तहत अपने अधिकारों पर चर्चा करनी चाहिए।

नोट: शिकायत के सबूत के तौर पर सभी लिखित संवाद को संभालकर रखें।

  1. अगर कंपनी बातचीत करने में विफल रहती है या समस्या का समाधान नहीं करती, तो महिला श्रम कार्यालय (Labour Office) में शिकायत दर्ज करानी चाहिए। जिसके बाद लेबर कमीशन कंपनी के खिलाफ जांच और कार्रवाई के लिए बाध्य होगा।
  2. किसी वकील या लेबर लॉ विशेषज्ञ से सलाह लें, जो इस मामले में कानूनी प्रक्रिया का मार्गदर्शन कर सके, जिससे वे आपके मामले को मजिस्ट्रेट या लेबर कोर्ट में ले जाने में मदद करेंगे।
  3. लेबर कोर्ट में केस दर्ज करें: मातृत्व लाभ अधिनियम के उल्लंघन पर, महिला कर्मचारी लेबर कोर्ट में शिकायत दर्ज कर सकती है।
  4. महिला राष्ट्रीय महिला आयोग (National Commission for Women) से मदद मांग सकती है। यह आयोग महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करता है और उत्पीड़न के मामलों में हस्तक्षेप करता है।
  5. सभी दस्तावेज जैसे नियुक्ति पत्र, वेतन पर्ची, ईमेल संवाद, और शिकायत पत्रों की प्रतियां सुरक्षित रखें। ये सबूत आपकी शिकायत को मजबूत बनाने में मदद करेंगे।
  6. अन्य सहकर्मियों से समर्थन लें और अपने अधिकारों के लिए संगठित होकर आवाज उठाएं।

मातृत्व लाभ अधिनियम,1961 का उल्लंगन करने पर दंडात्मक कार्रवाई:

अगर कंपनी दोषी पाई जाती है, तो कानून के तहत उस पर जुर्माना लगाया जा सकता है।

जुर्माना ₹5000 तक हो सकता है, और गंभीर मामलों में कंपनी के अधिकारी को 3 महीने तक की जेल हो सकती है।

इस मुद्दे पर जागरूकता फैलाएं ताकि अन्य महिलाओं को उनके अधिकारों के बारे में जानकारी मिल सके।

साभार,

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