जहां समाज में मजदूरों की सुरक्षा किसी भी कंपनी का दायित्व होती है तो इस दायित्व का पैसा कंपनियां मजदूरों से वसूलना चाहती हैं ऐसा ही एक मामला MMTC-PAMP और PAMP PRECISION कंपनी का सामने आया है जहां रातों-रात कंपनी ने मजदूरों की सुरक्षा के लिए दिया जाने वाला प्रीमियम जो लगभग ₹750 (एक सदस्य) का था वो रातों-रात कंपनी ने 70% तक बढ़ा दिया क्योंकि कंपनी अब मजदूरों के प्रीमियम भरने में MMTC-PAMP और PAMP PRECISION असमर्थ महसूस कर रही है ।
जहां मजदूर 8 से 9 सालों के बाद ₹23000+ सैलरी तक पहुंच पाए हैं जिसमें उनके रहने की,खाने-पीने की, बच्चों की शिक्षा, माता-पिता की देखभाल, वह आए दिन होने वाली बीमारियों से डॉक्टर का खर्च मौजूद होता है वह भी बड़ी मुश्किल से ही हो पता है लेकिन अब कंपनियों ने रातों-रात इंश्योरेंस को 70% गुना बढ़ने से उनकी स्थिति खराब कर दी है क्योंकि अब हर साल मजदूरों को ₹94000 हजार(लगभग) रुपए देना होगा। मजदूरों का कहना है कि वह सारा खर्चा निकालकर सैलरी का लगभग 2000 से 3000 रुपए ही बचा पते थे लेकिन अब कंपनी के इस कदम चलते मजदूरों कि बचत नहीं हो पाएगी ।
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पहले मजदूर और उसकी फैमिली के इन्श्योरेन्स प्रीमियम का खर्च कंपनी लगभग ₹4500 लेती थी जो अब ₹7800 देना होगा जिसमें मजदूर का परिवार का इंश्योरेंस पॉलिसी में आता है (मजदूर,मजदूर की पत्नी,दो बच्चे और बुजर्ग माता-पिता शामिल होते है)
बढ़े हुए प्रीमियम पर कंपनी का कहना है कि पिछले साल 149% क्लेम मजदूरों ने किया था जिसके चलते ऐसा करना पड़ रहा है मजदूरों को जब यह बात पता चली तो मजदूरों ने उन सभी मजदूरों की लिस्ट देने के लिए कहा जिन्होंने इसका फायदा उठाया था तब कंपनी ने चुप्पी साद ली और कहा कि यह कंपनी का अंदरूनी मामला है और लिस्ट देने से मना दिया जबकि मजदूरों का कहना है कि MMTC-PAMP के मैनेजमेंट द्वारा दी गई जानकारी गलत व बेबुनियाद है और कंपनी सारा खर्चा कंपनी मजदूरों से ही लेना चाहती है।
कंपनी के द्वारा बनाए गए प्रीमियम कि कीमत से अब मजदूरों को यह समझ में नहीं आ पा रहा है कि अब इसमें से मजदूर अपने परिवार से किसको निकले और किसको जोड़े रखें? क्योंकि बच्चों से लेकर बुजुर्ग माता-पिता हर मजदूरों की प्रथम प्राथमिकता रही है लेकिन बढ़ते हुए प्रीमियम ने मजदूरों की कमर इस तरह तोड़ दी है कि अब उनको अपनी बचत संतुलित करनी है तो किसी न किसी को इंश्योरेंस प्रीमियम इसमें से हटाना पड़ेगा क्योंकि इतनी सैलरी में आज के दिन मजदूरों का गुजारा भत्ता करना भी वह मुश्किल हो रखा है और मजदूर आर्थिक बोझ व मानसिक तनाव से गुजर रहे है ।
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मजदूरों पर बढ़ते बीमा पॉलिसी के दाम का असर
1. आर्थिक बोझ
बीमा पॉलिसी के बढ़ते दाम मजदूरों पर आर्थिक बोझ बढ़ा रहे हैं। मजदूरों की आमदनी का एक बड़ा हिस्सा प्रीमियम के रूप में चली जाती है , जिससे साथ ही आवश्यक खर्चों में कटौती करने की नौबत आ जाती है।
2. मानसिक तनाव
बढ़ते प्रीमियम और स्वास्थ्य सेवाओं की उच्च लागत के कारण मजदूरों में मानसिक तनाव भी बढ़ रहा है। आर्थिक असुरक्षा और भविष्य की अनिश्चितता के कारण उनका मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है। यह तनाव उनकी कार्यक्षमता और उत्पादकता पर भी नकारात्मक प्रभाव डालता है।
3. स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच
महंगे प्रीमियम के कारण कई मजदूर कंपनी द्वारा बीमा पॉलिसी का लाभ नहीं ले पाते और मजदूर अपने और अपने परिवार का (पत्नी,बच्चे व माता- पिता) स्वास्थ्य जरूरतों को पूरा नहीं कर पाते है, जिससे मजदूरों के ऊपर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
कंपनियों की जिम्मेदारी
कंपनियों को भी इस दिशा में सकारात्मक कदम उठाने चाहिए। कंपनियों को अपने कर्मचारियों के स्वास्थ्य बीमा को प्राथमिकता देनी चाहिए और उन्हें बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध करानी चाहिए। इसके साथ ही, बीमा पॉलिसी के प्रीमियम का बोझ कर्मचारियों पर डालने के बजाय कंपनियों को बीमा पॉलिसी के प्रीमियम का खर्चा खुद वहन करना चाहिए।
निष्कर्ष
बढ़ते बीमा पॉलिसी के दाम मजदूरों के लिए एक गंभीर समस्या बन चुके हैं। इस समस्या का समाधान केवल तभी संभव है जब सरकार, कंपनियां और बीमा कंपनियां मिलकर इसके लिए प्रयास करें। मजदूरों की आर्थिक और स्वास्थ्य सुरक्षा सुनिश्चित करना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है।
इस लेख में हमने देखा कि कैसे बीमा पॉलिसी के दाम बढ़ने से मजदूरों पर आर्थिक बोझ बढ़ रहा है, उनकी मानसिक स्थिति प्रभावित हो रही है, और स्वास्थ्य सेवाओं तक उनकी पहुंच सीमित हो रही है। हमें इस दिशा में सकारात्मक कदम उठाने होंगे ताकि मजदूरों की स्थिति में सुधार हो सके और वे सुरक्षित और स्वस्थ जीवन जी सकें।