भारत में कंपनियों का स्वरूप तेजी से बदल रहा है तो इसके साथ ही हिंदी भाषा भी भारत में कंपनियों के अंदर बोले जाने वाली भाषाओं में तेजी से शुमार हो रही है । आज भारत की लगभग सभी कंपनिया अंग्रेजी के साथ हिंदी वह क्षेत्रीय भाषाओं में अपने नियम कानून दिशा निर्देश भी रख रही हैं जिससे मजदूरों के लिए बनाए गए कानून मजदूर/श्रमिक आसानी से समझ सके लेकिन यह जितना आसान लगता है उतना है नहीं क्योंकि कुछ कंपनी मजदूरों के शोषण के लिए बड़ी चालाकी के साथ अंग्रेजी भाषा को मध्यम बनाकर उनका शोषण कर रही है क्योंकि मजदूरों को अंग्रेजी भाषा नहीं आती बस इसी का फायदा उठाकर कंपनी मजदूरों को न्याय प्रक्रिया, वेतन वृद्धि, पदोन्नति दस्तावेज को अंग्रेजी में बनाकर मजदूरों के सामने रखकर बड़ी आसानी से ऐसे दस्तावेजों पर उनके हस्ताक्षर करवा लेती है जिन्हें कंपनियां आगे चलकर मजदूरों के खिलाफ इस्तेमाल कर सके जिसे हम कंपनियां का “अंग्रेजी भाषा का हथियार” कह सकते हैं जिससे कंपनियों में मजदूरों को दबाने व शोषण के रूप में लाती है ।आइए इसे समझते हैं ।
मजदूरों के अधिकार व अनुबंधों की जानकारी को छुपाना
हम सब जानते हैं कि मजदूर वर्ग कम पढ़ा लिखा होता है और वह अंग्रेजी भाषा नहीं जानता अगर कोई मजदूर अंग्रेजी पढ़ भी लेता है तो वह अंग्रेजी भाषा को समझ ही नहीं पता इसका नतीजा यह होता है कि कंपनियां नियुक्तियों के दौरान उनके समक्ष अंग्रेजी में दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करवा लेती हैं और उन्हें मौखिक रूप से हिंदी में समझती है कि इसमें “यह सब लिखा हुआ है या क्या-क्या लिखा हुआ है”। जबकि जो बातें मजदूरों के लिए अहम होती है वह उन्हें नहीं समझती कुछ कंपनियां तो ऐसी शर्तें लिखती है जो मजदूरों के लिए भविष्य में खतरा बन जाती हैं जैसे की
कंपनी जब चाहे मजदूर को निकाल सकती है ।
मजदूर बिना कंपनी के कहे जॉब छोड़कर नहीं जा सकता
कंपनी जब चाहे वेतन में कटौती कर सकती है
मजदूर कंपनी से बोनस नहीं मांग सकता है
कंपनी में मजदूर 3 साल तक ही कार्य करेगा
अगर कंपनी में मजदूर के साथ कोई हादसा हो जाए तो उसकी जिम्मेदारी मजदूर की होगी ना की कंपनी की
इसके अलावा छुट्टियां, स्वास्थ्य सुविधा, यह सब डॉक्यूमेंट अंग्रेजी में उपलब्ध करती है जिसे मजदूर समझ नहीं पता और वह साइन कर देता है।
मालिक और मजदूरों के साथ भाषा की वजह से संवाद नहीं होने से उत्पन्न समस्या ।
हम इस बात से वाकिफ हैं कि भारत में भारतीय कंपनियों के साथ विदेशी कंपनियां भी स्थापित हैं और इन सब का संचार का माध्यम अंग्रेजी होता है भारतीय कारखानो के मालिकों को हम कह सकते हैं कि उन्हें हिंदी आती भी होगी पर प्रत्येक के लिए हिंदी में बात करना या समझना शायद संभव नहीं है क्योंकि उनकी पढ़ाई लिखाई अंग्रेजी में होती है और विदेशी कारखानो के मालिक का माध्यम तो अंग्रेजी भाषा ही होती है।
मजदूरो को जब कंपनी में होने वाली घटनाओं की जानकारी सीधे सीधे कंपनी के मालिक को देनी हो जिसके कारण कंपनी को कोई नुकसान हो रहा हो या मजदूरों के शोषण की बात हो या कंपनी के मैनेजर कंपनी में ऐसे कार्य कर रहे हो या करवा रहे हो जो गैरकानूनी के साथ कंपनी के लिए खतरा हो तो मजदूर मालिक से नहीं कह पाते जिसका नतीजा यह होता है कि मैनेजमेंट मलिक को मजदूरों के खिलाफ करवा देते हैं और कंपनी में होने वाली स्थिति का सारा आरोप मजदूरों पर लगा देते है जिससे मालिको और मजदूरों के बीच दर्रार बन जाती है।और मैनेजमेंट वह सब कार्य करती रहती है जो कंपनी के हित में नहीं होते, एक तरीके से कह सकते हैं की अंग्रेजी के अभाव में मालिकों को मजदूरों के खिलाफ भड़का दिया जाता है जिससे मैनेजमेंट अपना काम निकाल सके । कई बार ऐसा भी होता है कि प्रबंधक (management) के कारण कई कंपनियां बदनाम भी हो चुकी हैं और इनका सारा इल्जाम मजदूरों के ऊपर मड दिया जाता है और कई कंपनी तो बंद भी हो गई है जिनका कारण मजदूर को बताया गया था लेकिन जांच में जब पता चलता है कि यह सब प्रबंधक की साजिश थी जो एक मोटा मुनाफा कंपनियों से गैर कानूनी तरीके से ले रहे थे।

भाषा के नाम पर पदोन्नति में वरीयता
मजदूरों को अंग्रेजी भाषा नहीं आती जिसके कारण कंपनियों में अगर किसी मजदूर को 20 से 40 वर्ष भी क्यों ना हो जाए उन्हें पदोन्नति भी नहीं दी जाती क्योंकि कंपनियो को यह लगता है कि बिना अंग्रेजी भाषा के ज्ञान के कंपनियों की रेपुटेशन पर बुरा असर पड़ेगा साथ ही साथ जिन मजदूर को मैनेजमेंट के आगे बोलने की इजाजत न हो वह भी उनके साथ उड़ने बैठने लगेगा जो वह नहीं चाहते। और अंग्रेजी भाषा को पदोन्नति के लिए अनिवार्य कर उनका शोषण करते हैं ।
न्याय में बाधा उत्पन्न करने के लिए अंग्रेजी भाषा का उपयोग
मजदूरों को सबसे ज्यादा अगर भाषा के नाम पर ठेस पहुंचती है या उनका दमन होता है तो वह उनके अधिकारों का शोषण है। कंपनियां आज के समय के दौरान मजदूरों को किसी न किसी वजह से निकाल देना चाहती हैं चाहे कारण मजदूरों की सैलरी हो, बड़ती हुई उम्र हो या शोषण के खिलाफ खड़े होना बस कंपनी निकलना चाहती हैं अभी हाल ही में “खराब खाना ना खाने पर एमएमटीसी पंप ने अपने दो मजदूरों को ही निकाल दिया” कहते हैं कि कंपनी मजदूरों की खाने के शिकायतो को लेकर बहुत परेशान थी और इसे कंट्रोल करने के लिए कंपनी ने ऐसा कदम उठाया।
अब सवाल यह है कि न्याय में अंग्रेजी भाषा से कैसे बाधा उत्पन्न कर मजदूरों का शोषण हो सकता है?
जब किसी मजदूर को कंपनी निकलती है तो उसे कई चरणों से गुजरना होता है जैसे कारण बताओं नोटिस, कंपनी की आंतरिक जांच, आधोगिक विवाद अधिनियम 33(2)b आदि। कंपनीया यह अच्छी तरह से जानती है कि कंपनी में काम करने वाले मजदूरों को अंग्रेजी भाषा का ज्ञान नहीं है फिर भी कंपनी मजदूरों को किसी घटना के बारे में जवाब उसे अंग्रेजी भाषा में उपलब्ध कारती हैं चाहे मजदूर ने हिन्दी के लिए कहा हो। फिर भी कंपनी जाच प्रणाली को अंग्रेजी में ही रखती हैं जिस कारण मजदूर ना तो उसका जवाब दे पाते हैं और न ही समझ पाते है । मजदूरों को निकालने के लिए अंग्रेजी भाषा का इस्तेमाल कर उन्हें बड़ी आसानी से बाहर कर देती हैं और मजदूर ज्ञान के अभाव के कारण कुछ नहीं कर पता है।
आज के दौर में श्रम विभाग भी कंपनियों का पूरा साथ देते दिखते हैं और श्रम विभाग में कंपनियों द्वारा होने वाली कार्यवाही अंग्रेजी भाषा में होती है और श्रम विभाग यह जानते हुए भी मजदूरों को अंग्रेजी भाषा नहीं आती फिर भी श्रम विभाग को कोई आपत्ति नहीं होती चाहे मजदूर ने हिन्दी के लिए श्रम विभाग में भी बोलो हो और मजदूरों का शोषण भाषा के नाम पर श्रम विभाग में भी होता है। अगर मजदूर न्याय के लिए वकील भी कर भी लें तो वकील भी अपनी कार्यवाही का जवाब अंग्रेजी में करते दिखते हैं जिससे मजदूरों को यह पता नहीं चलता कि आखिर उनके साथ क्या हो रहा है और जब मजदूर बेगुनाह होते हुए जब कंपनी से निकाल दिया जाता है तो उनका नजरिया न्याय प्राणी से भी उठ जाता है इस कारण काफी मजदूर कोर्ट में जाने तक को तैयार ही नहीं है।
अन्त में,
कंपनियों में अंग्रेज़ी भाषा का उपयोग मजदूरों को रोदने और शोषण करने के एक सशक्त हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। मजदूरों को भाषा के कारण अधिकारों से वंचित करना, उनके विकास के अवसरों को सीमित करना, और धोखे में रखकर उनसे ऐसे पेपर पर हस्ताक्षर करना जो गैरकानूनी होते है, यह सब अंग्रेज़ी भाषा की जानकारी के अभाव के कारण हो रहा है। या ये कहे कि कम पढे लिखे होने कि वजह से मजदूरों के साथ ऐसा किया जा रहा है।
इस समस्या का समाधान केवल तब संभव है जब कंपनियाँ अपने कर्मचारियों के साथ अंग्रेजी भाषा को हथियार न बनाए तथा श्रम विभाग में मजदूरों की समझ वाली भाषा को पहले वरीयता दे। इसके अलावा, सरकार और श्रमिक संघों को भी मजदूरों के अधिकारों की रक्षा के लिए भाषा के ऊपर ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।